ग़म है या ख़ुशी है, पर मेरी ज़िन्दगी हैं तू..
आफतों के दौर में, चैन की घडी हैं तू..
मेरी रात का चराग, मेरी नींद भी हैं तू..
मैं फिजा की शाम हूँ, रूत बहार की हैं तू..
दोस्तों के दरमियान, वजह-ए-दोस्ती है तू..
मेरी सारी उम्र में, एक ही कमी हैं तू..
~ अज़ीम आजाद