Home » Jitendra Mishra
धूप में चलना पड़ेगा।
रेत में जलना पड़ेगा।
राह में यदि शूल आएं।
पुष्प बन मिलना पड़ेगा।
~ जितेंद्र मिश्र ‘भरत जी’
दिल में लगी है आग, बताएं कैसे।
गमों का आशियाना, दिखाएं कैसे।
बताएं या छुपाए, हार अपनी है।
अपने घरों की आग, बुझाएं कैसे।
~ जितेंद्र मिश्र ‘भरत जी’
मन का सूरज चमकता रहे, सुख का उपवन महकता रहे।
खुशी आंगन में खेलें सदा, यश का परचम फहरता रहे।
~ जितेंद्र मिश्र ‘भरत जी’
मन के भावों को जता रही हिंदी।
साहित्यिक दर्शन करा रही हिंदी।
अपनी हिंदी जोड़ती है दिलों को।
विश्व में परचम लहरा रही हिंदी।
~ जितेंद्र मिश्र ‘भरत जी’
जो जीते हैं सिर्फ़ अपनी खुशियों के लिए, उनके लिए रिश्तों का मोल होता नहीं है।
खो जाते हैं वो किसी दूसरी दुनिया में, वास्तव में उनके लिए कोई रोता नहीं है।
~ जितेंद्र मिश्र ‘भरत जी’
कुछ पाना कुछ खोना जीवन में होता है।
जहाँ बहारें होती वहाँ पतझड़ होता है।
~ जितेंद्र मिश्र ‘भरत जी’
कलकल बहती नदी है मां
जीवन रूपी सदी है मां
पोंछती है आंसू छुपकर
पर कुछ नहीं कहती है मां
~ जितेंद्र मिश्र ‘भरत जी’
गांव के बाजारों में भी, खूब नज़ारे होते थे।
चाट पकौड़ी और बताशों के चटकारे होते थे।
नीम और बरगद की छाया में बैठा करते थे।
खुशियों के पल आपस में वारे न्यारे होते थे।
~ जितेंद्र मिश्र ‘भरत जी’
प्यार से रिश्ता निभाना चाहिए।
सोचकर के दिल लगाना चाहिए।
मुश्किलें राह पर मिलती रहेंगीं।
कर्म पथ पर चलते जाना चाहिए।
~ जितेंद्र मिश्र ‘भरत जी’
मुसीबत के इस दौर में, कुछ कर सको तो करो।
बहुतों को नहीं मिल रहा है, अपनों का साथ।
~ जितेंद्र मिश्र ‘भरत जी’
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